भारतेंदु हरिश्चंद्र का साहित्यिक परिचय

◆◆●भारतेंदु हरिश्चंद्र◆◆◆
पूरा नाम-        बाबू भारतेन्दु हरिश्चंद्र
जन्म-             9 सितम्बर सन् 1850
जन्म भूमि-      वाराणसी, उत्तर प्रदेश
मृत्यु-              6 जनवरी, सन् 1885
 मात्र 35 वर्ष की अल्प आयु में ही इनका देहावसान हो गया था|
मृत्यु स्थान-       वाराणसी, उत्तर प्रदेश
अभिभावक –     बाबू गोपाल चन्द्र
कर्म भूमि –          वाराणसी
कर्म-क्षेत्र –        पत्रकार, रचनाकार, साहित्यकार
उपाधी:-           भारतेंदु (काशी के पं.लोकनाथ)
नोट:- डॉक्टर नगेंद्र के अनुसार उस समय के पत्रकारों एवं साहित्यकारों ने 1880 ईस्वी में इन्हें ‘भारतेंदु’ की उपाधि से सम्मानित किया|
(भारतेंदु- भारत+ इंदु अर्थात भारत का चंद्रमा )
◆#सम्पादन_कार्य:-  इनके द्वारा निम्नलिखित तीन पत्रिकाओं का संपादन किया गया:-
1. कवि वचन सुधा- 1868 ई.-    काशी से प्रकाशीत (मासिक,पाक्षिक,साप्ताहिक)
2. हरिश्चन्द्र चन्द्रिका- 1873 ई. (मासिक)-   काशी से प्रकाशीत
– आठ अंक तक यह ‘हरिश्चन्द्र मैगजीन’ नाम से तथा ‘नवें’ अंक से इसका नाम ‘हरिश्चन्द्र चन्द्रिका’ रखा गया|
– हिंदी गद्य का ठीक परिष्कृत रूप इसी ‘चंद्रिका’ में प्रकट हुआ|
3. बाला-बोधिनी- 1874 ई. (मासिक)-   काशी से प्रकाशीत
-यह स्त्री शिक्षा सें संबंधित पत्रिका मानी जाती है|
◆#प्रमुख_रचनाएं:- 
इनकी कुल रचनाओ की संख्या 175 के लगभग है-
◆ नाट्य रचनाएं:- कुल 17 है जिनमे ‘अाठ’ अनूदित व ‘नौ’ मौलिक नाटक है-
■ #अनूदित_नाटक- आठ
1. विद्यासुंदर- 1868 ई.- यह संस्कृत नाटक “चौर पंचाशिका” के बंगला संस्करण का हिन्दी अनुवाद है|
2.रत्नावली- 1868 ई.- यह संस्कृत नाटिका ‘रत्नावली’ का हिंदी अनुवाद है|
3. पाखंड-विडंबन- 1872 ई.- यह संस्कृत में ‘कृष्णमिश्र’ द्वारा रचित ‘प्रबोधचन्द्रोदय’ नाटक के तीसरे अंक का हिंदी अनुवाद है|
4. धनंजय विजय- 1873 ई.- यह संस्कृत के ‘कांचन’ कवि द्वारा रचित ‘धनंजय विजय’ नाटक का हिंदी अनुवाद है
5. कर्पुरमंजरी- 1875 ई.- यह ‘सट्टक’ श्रेणी का नाटक संस्कृत के ‘काचन’ कवि के नाटक का अनुवाद|
6. भारत जननी- 1877 ई.- इनका गीतिनाट्य है जो संस्कृत से हिंदी में अनुवादित
7. मुद्राराक्षस- 1878 ई.- विशाखादत्त के संस्कृत नाटक का अनुवाद है|
8. दुर्लभबंधु-1880 ई.- यह अग्रेजी नाटककार ‘शेक्सपियर’ के ‘मर्चेट ऑव् वेनिस’ का हिंदी अनुवाद है|
■Trik:- विद्या रत्न पाकर धनंजय कपुर ने भारत मुद्रा दुर्लभ की|
◆ #मौलिक_नाटक- नौ
1. वैदिक हिंसा हिंसा न भवति- 1873 ई.- (प्रहसन)
– इसमे पशुबलि प्रथा का विरोध किया गया है|
2. सत्य हरिश्चन्द्र- 1875 ई.- असत्य पर सत्य की विजय का वर्णन|
3. श्री चन्द्रावली नाटिका- 1876 ई. – प्रेम भक्ति का आदर्श प्रस्तुत किया गया है|
4. विषस्य विषमौषधम्- 1876 ई.- (भाण )
– यह देशी राजाओं की कुचक्रपूर्ण परिस्थिति दिखाने के लिए रचा गया था|
5. भारतदुर्दशा- 1880 ई.- नाट्यरासक
6. नीलदेवी- 1881 ई.- गीतिरूपक
7. अंधेर नगरी- 1881 ई.- प्रहसन (छ: दृश्य) भ्रष्ट शासन तंत्र पर व्यंग्य किया गया है|
8. प्रेम जोगिनी- 1875 ई.
– तीर्थ स्थानों पर होनें वाले कुकृत्यों का चित्रण किया गया है|
9. सती प्रताप- 1883 ई.
– यह इनका अधुरा नाटक है बाद में ‘ राधाकृष्णदास’ ने पुरा किया|
◆#काव्यात्मक_रचनाएं:- 
इनकी कुल काव्य रचना 70 मानी जाती है जिनमे कुछ प्रसिद्ध रचनाएं:-
-प्रेममालिका- 1871
-प्रेमसरोवर-1873
-प्रेम पचासा
– प्रेम फुलवारी-1875
– प्रेम माधुरी-1875
– प्रेम तरंग
– प्रेम प्रलाप
– विनय प्रेम पचासा
– वर्षा- विनोद-1880
– गीत गोविंदानंद 
-वेणु गीत -1884
-मधु मुकुल 
-बकरी विलाप 
-दशरथ विलाप 
-फूलों का गुच्छा- 1882
– प्रबोधिनी
– सतसई सिंगार
– उत्तरार्द्ध भक्तमाल-1877
-रामलीला 
-दानलीला 
– तन्मय लीला 
-कार्तिक स्नान 
-वैशाख महात्म्य
– प्रेमाश्रुवर्षण
– होली
– देवी छद्म लीला 
-रानी छद्म लीला 
-संस्कृत लावनी 
-मुंह में दिखावनी 
-उर्दू का स्यापा
– श्री सर्वोतम स्तोत्र
– नये जमाने की मुकरी
– बंदरसभा
– विजय-वल्लरी- 1881
– रिपनाष्टक
– भारत-भिक्षा- 1881
– विजयिनी विजय वैजयंति- 1882
नोट- इनकी ‘प्रबोधनी’ रचना विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार की प्रत्यक्ष प्रेरणा देने वाली रचना है|
★’दशरथ विलाप’ एवं ‘फूलों का गुच्छा’ रचनाओं में ब्रजभाषा के स्थान पर ‘खड़ी बोली हिंदी’ का प्रयोग हुआ है|
★ इनकी सभी काव्य रचनाओं को ‘भारतेंदु ग्रंथावली’ के प्रथम भाग में संकलित किया गया है|
★  ‘देवी छद्म लीला’, ‘तन्मय लीला’ आदि में कृष्ण के विभिन्न रूपों को प्रस्तुत किया गया है|
◆उपन्यास:-
– हम्मीर हठ
– सुलोचना
– रामलीला
– सीलावती
– सावित्री चरित्र
◆निबंध:-
– कुछ आप बीती कुछ जग बीती 
– सबै जाति गोपाल की 
– मित्रता 
– सूर्योदय 
– जयदेव 
– बंग भाषा की कविता
◆इतिहास_ग्रंथ:- 
– कश्मीर कुसुम
– बादशाह
◆#विशेष_तथ्य:-
★ ये हिंदी गद्य साहित्य के जन्मदाता माने जाते हैं|
– इनके द्वारा हिंदी लेखकों की समस्याओं का समाधान करने के लिए (समस्या पूर्ति के लिए) ‘कविता वर्धनी सभा’ की स्थापना की गई थी|
★ इनके द्वारा 1873 ईस्वी में ‘तदीय समाज’ की स्थापना भी की गई थी|
★ इन्होंने हिंदी साहित्य के सर्वप्रथम अभिनीत नाटक ‘जानकी मंगल’ (लेखक शीतला प्रसाद त्रिपाठी) में #लक्ष्मण पात्र की भूमिका निभाई थी|
★ यह ‘रसा’ उपनाम से भी लेखन कार्य करते थे|
– इन्होंने बल्लभाचार्य द्वारा प्रवर्तित ‘पुष्टिमार्ग’ में दीक्षा ग्रहण की थी|
★यह 11 वर्ष की अल्प आयु में ही कविताएं लिखने लग गए थे|
★अपनी अति उदारता के कारण ही वे अपने पूर्वजों की संपत्ति लुटाकर दरिद्र हो गये| जीवन के अंतिम दिनों तक वे साहित्यकारों, कवियों व दीन दुखियों की सहायता करते रहे|
★ इनकी #कालचक्र’ रचना के अनुसार “हिंदी 1873 ईस्वी में नई चाल में ढली”..।
★रामचंद्र शुक्ल के अनुसार ये केवल नर प्रकृति के कवि माने गए हैं| इनमें बाह्य प्रकृति की अनेक रुपता के साथ उनके हृदय का सामंजस्य नहीं पाया जाता|
★ इन्होंने खुसरो जैसी पहेलियां और मुकरियां भी लिखी थी|
◆भारतेंदु जी की प्रसिद्ध पंक्तिया:-ं
★       “भारत में सब भिन्न अति,
            ताहीं सों उत्पात।
            विविध बेस मतहूं विविध
            भाषा विविध लखात।”
★ “अंग्रेज़ी पढ़ कै जदपि,
सब गुन होत प्रवीन।
पै निज भाषा ज्ञान बिन
रहत हीन कै हीन।”
★”निजभाषा उन्नति अहै,
सब उन्नति को भूल।
बिन निज भाषा ज्ञान के
मिटे न हिय को सूल।”

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