परिवर्तन / सुमित्रानंदन पंत

(१) अहे निष्ठुर परिवर्तन! तुम्हारा ही तांडव नर्तन विश्व का करुण विवर्तन! तुम्हारा ही नयनोन्मीलन, निखिल उत्थान, पतन! अहे वासुकि सहस्र फन! लक्ष्य अलक्षित चरण तुम्हारे चिन्ह निरंतर छोड़ रहे हैं जग के विक्षत वक्षस्थल पर ! शत-शत फेनोच्छ्वासित,स्फीत फुतकार भयंकर घुमा रहे हैं घनाकार जगती का अंबर ! मृत्यु तुम्हारा गरल दंत, कंचुक कल्पान्तर … Read more

द्रुत झरो जगत के जीर्ण पत्र / सुमित्रानंदन पंत

द्रुत झरो जगत के जीर्ण पत्र! हे स्रस्त-ध्वस्त! हे शुष्क-शीर्ण! हिम-ताप-पीत, मधुवात-भीत, तुम वीत-राग, जड़, पुराचीन!! निष्प्राण विगत-युग! मृतविहंग! जग-नीड़, शब्द औ’ श्वास-हीन, च्युत, अस्त-व्यस्त पंखों-से तुम झर-झर अनन्त में हो विलीन! कंकाल-जाल जग में फैले फिर नवल रुधिर,-पल्लव-लाली! प्राणों की मर्मर से मुखरित जीव की मांसल हरियाली! मंजरित विश्व में यौवन के जग कर … Read more

प्रथम रश्मि / सुमित्रानंदन पंत

  प्रथम रश्मि का आना रंगिणि!तूने कैसे पहचाना?कहाँ, कहाँ हे बाल-विहंगिनि!पाया तूने वह गाना?सोयी थी तू स्वप्न नीड़ में,पंखों के सुख में छिपकर,ऊँघ रहे थे, घूम द्वार पर,प्रहरी-से जुगनू नाना। शशि-किरणों से उतर-उतरकर,भू पर कामरूप नभ-चर,चूम नवल कलियों का मृदु-मुख,सिखा रहे थे मुसकाना। स्नेह-हीन तारों के दीपक,श्वास-शून्य थे तरु के पात,विचर रहे थे स्वप्न अवनि … Read more