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हम कर्म बंधन से बंधे हैं-Do Your Best Always
हम सभी मनुष्य कर्म के बंधन से पूर्ण रूप से बंधे हुए हैं. हमने इस धरा पर जन्म लिया है तो अपने कर्म करने के दायित्व का निर्वहन करना ही पड़ेगा. अच्छे और बुरे कर्म मनुष्य अपनी प्रवृत्ति के अनुसार करता है. जो इंसान सद् प्रवृत्ति का होता है, वह सदैव अच्छे कर्मों में प्रवृत्त होता है . जिस इंसान की प्रकृति बुरी होती है, वह हमेशा बुरे कर्मों का ही आचरण करता है. किसी भी दशा में हम कर्म करने से बच नहीं सकते, हमें निंरतर कर्म करते रहना ही होगा.
कर्मों की भी एक गति होती है. जिसके जैसे कर्म होते हैं, उसको वैसे ही फल की प्राप्ति भी जरूर ही होती है. अतः हमारा प्रयास रहना चाहिए कि हम बुरे कर्मों से सदैव स्वयं को बचाये रखें एवं अच्छे कर्मों में खुद को प्रवृत रखें, जिससे कि हमें उत्तम फल की प्राप्ति हो. तो आइए आज की इस पोस्ट- हम कर्म बंधन से बंधे हैं (Do Your Best Always) में हम कर्म बंधन से किस प्रकार बंधे हैं और यह कैसे फलित होता है, इसके बारे में विस्तार पूर्वक बात करेंगे.
कर्म बंधन का स्वरुप कैसा होता है?
उदाहरण स्वरूप के लिए हम दो इंसानों को यहां पर रखते हैं. एक इंसान बहुत ही अच्छी प्रकृति का है और दूसरा व्यक्ति बुरी प्रकृति का है. दोनों ही अपने-अपने स्वभाव के अनुसार आचरण करते हैं, अपने कर्मों में संलिप्त रहते हैं. जो अच्छी प्रवृत्ति वाला इंसान है, वह सदैव अच्छे कर्मों से अपने सौभाग्य निर्माण में लगा रहता है, जबकि बुरी प्रवृत्ति वाला व्यक्ति हमेशा बुरे कर्मों में ही संलिप्त रहता है.
” अच्छे कर्म करने चाहिए ये ही हमारी सबसे बड़ी समझदारी है
अपने कर्म का फल जरुर मिलेगा बाकी जो है सब दुनियादारी है
बुरे कर्म करने वाला इन्सान कभी भी चैन से नहीं रह पाता और
जिसके कर्म अच्छे हैं उसने अपनी जिन्दगी बड़े सुख से गुजारी है ”
कर्म दोनों ही व्यक्ति करते हैं क्योंकि दोनों ही व्यक्ति कर्म बंधन से बंधे हुए हैं. जो अच्छे कर्म करने वाला इंसान है, वह हमेशा अपने जीवन में समस्त उपलब्ध सुखों का उपभोग करता हुआ सुखमय जीवन बिताता है. उसे जीवन में हर सुख की प्राप्ति होती है. वह तमाम ऐश्वर्य का उपभोग करता है. उसकी लाइफ में सब कुछ अच्छा होता है.
चूंकि वह व्यक्ति समय और काल की परिस्थितियों को देखते हुए अपना आचरण करता है, अतः उसका समयानुकूल आचरण उसे हमेशा अच्छे फल की प्राप्ति में मददगार होता है. उसे जीवन में अच्छे लोग मिलते हैं, उसके जीने का अंदाज बहुत बेहतर होता है और प्रत्येक स्थिति में वह दूसरे लोगों की तुलना में श्रेष्ठ जीवन व्यतीत करने का सौभाग्य प्राप्त करता है.
इसके ठीक विपरीत, बुरे कर्मों में संलिप्त व्यक्ति सदैव बुरे कार्य करता है, अतः उसके बुरे कार्य उसे वैसा ही फल प्रदान करते हैं. उसकी लाइफ में सदैव नकारात्मक एवं विपरीत परिस्थितियां हावी रहती हैं. उसने जैसे कर्म किए हैं, उसी के अनुरूप उसे अपने जीवन में कर्म फल भोगना पड़ता है. उसका जीवन बहुत कष्टकारी और दुखमय हो जाता है, क्योंकि यही विधि का विधान भी है कि कर्म फल से किसी भी परिस्थिति में चाह कर भी बचा नहीं जा सकता.
यदि निकृष्ट कर्मों में संलिप्त व्यक्ति जीवन के किसी भी मोड़ पर बुरे कार्यों का परित्याग कर अच्छे कर्मों का दामन थाम ले तो बहुत संभव है कि उसको अपने जीवन काल में कभी किसी बात का कष्ट नहीं उठाना पड़े. जो कर्म पूर्व में किये जा चुके हैं, उनको तो अब परिवर्तित किसी भी हाल में नहीं किया जा सकता. किंतु शेष बच रहे जीवन में नेक सत्कर्मों द्वारा अपने दुर्भाग्य को सौभाग्य में अवश्य ही परिवर्तित किया जा सकता है.
” अच्छे कर्म करने से इहलोक और परलोक दोनों सुधर जाते हैं
बुरे कर्म करने वाले जीवन रुपी भँवर में डूबते और उतराते हैं
अपना भाग्य अपने ही सत्कर्मों से कोई भी इंसान लिख सकता है
कर्म अच्छे हों तो गर्दिश और ग़मों के दिन भी हँसी-ख़ुशी गुजर जाते हैं “
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हमारा क्या कर्म होना चाहिए?
यह बात हम सभी के जीवन में अक्षरशः लागू होती है. हम चाहे किसी भी कार्य क्षेत्र में क्यों ना हों, हमको इस बात को अपने मन की गहराईयों में बहुत अच्छे से बिठा लेना चाहिए. इस बात को हम उदाहरण के रुप में और भी अच्छे ढंग से समझने का ईमानदारी से प्रयास करेंगे.
विद्यार्थी का कर्म कैसा हो?
यदि हम विद्यार्थी जीवन में हैं तो हमारा अंतिम लक्ष्य यही होता है कि हमें बहुत अच्छी शिक्षा प्राप्त करके सामाजिक प्रतिष्ठा को प्राप्त करना है और हमारे माता-पिता के द्वारा खुली आँखों से हमारे लिए देखे गये खूबसूरत सपनों को साकार करना है. तो इसके लिए हमें मन लगाकर अध्ययन करना होगा. अपने कीमती समय को व्यर्थ बातों में नष्ट होने से बचाना होगा. यही सब तो करने की हमें आवश्यकता होगी.
यदि हम ऐसा कर पाये तो हमारे एवं हमारे माता-पिता के सपने एक दिन जरूर सच हो जायेंगे. चूंकि हमने अपने अध्यवसाय द्वारा कोई कसर बाकी नहीं छोड़ी, अतः हमारे कर्मों का फल हमें अच्छे रूप में प्राप्त होता है. वहीं यदि हम अध्ययन और मनन-चिंतन के स्थान पर अपना बहुमूल्य समय खेल-कूद या अन्य किसी व्यर्थ गतिविधियों में नष्ट कर देते, तो सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है कि हमारे कर्म फल किस रूप में हमारे सम्मुख प्रकट होते. इसलिये जिस समय जो कर्म उचित एवं आवश्यक हैं, वही करने की जरूरत होती है क्योंकि जैसा किया है, वैसा ही भरना भी पड़ता है.
” मानो या चाहे ना मानो हर एक कर्म की भी एक गति होती है
अच्छे कर्म वाले की सद्गति और बुरे इन्सान की दुर्गति होती है
सभी का अपना-अपना आचरण और अपना स्वभाव होता है
इंसान वैसे ही कर्म करता है जैसी उसकी बुद्धि या मति होती है “
व्यवसायी कैसे कर्म करे?
यदि हम जीवन में व्यावसायिक गतिविधियों के क्षेत्र में कार्य करते हैं तो हमारा उद्देश्य यही होना चाहिए कि हम अपने व्यवसाय की दिन-दूनी, रात-चौगुनी तरक्की के लिए यथासंभव प्रयास करें. हम बेहतर से बेहतर तकनीक और उपलब्ध संसाधनों का समुचित प्रयोग करें. जिससे हमारा कारोबार बुलंदियों के शिखर पर पहुंच जाये और हम अपने कठोर परिश्रम के मधुर फल का रसास्वादन कर सकें.
यदि हम हाथ पर हाथ धरे बैठे रह गये तो हमारी नियति हमको ना जाने किस अंधेरे कोने में ले जाकर पटकेगी, जहाँ से हमको रोशनी की किसी मामूली सी किरण के दर्शन भी बमुश्किल हो पायेंगे. अतः जब कर्म क्षेत्र में हम उतर ही चुके हैं तो क्यों ना फिर हम कुछ ऐसे अच्छे कर्म करें, जिनके फल सुस्वादू हों.
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नौकरी पेशा वाले का क्या कर्म है?
यदि हमारा कार्य क्षेत्र नौकरी है तो हमें यहाँ पर भी उपरोक्त बातों को अपने जीवन में शब्दशः उतारने की बहुत आवश्यकता है. हमने बहुत ही कठोर तपस्या एवं परिश्रम के द्वारा नौकरी प्राप्त की है. अब यहां पर आने के पश्चात हमको इसमें अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करना है. चूंकि अब हम कर्म बंधन में तो बंध ही चुके हैं तो फिर कोई कसर क्यों उठा रखनी?
हमारा सर्वश्रेष्ठ देना हमें अपनी नौकरी में बहुत आगे ले जायेगा. हमारी तरक्की का मार्ग हमारे श्रेष्ठ कर्म ही प्रशस्त करेंगे. हमें सदैव इस बात का सुकून भी रहेगा कि हमने स्वयं को श्रेष्ठता की कसौटी पर अन्य लोगों से कई गुना अधिक साबित कर दिया है. वहीं दूसरी ओर यदि हम अकर्मण्य बने रहे तो शीघ्र ही नौकरी के साथ-साथ जीवन जीने का असली आनंद भी कहीं दूर जाता रहेगा. अतः आप श्रेष्ठता के नये मानक स्थापित करो, आपको प्रत्युत्तर में श्रेष्ठ और मधुर फलों का रसास्वादन करने का अवसर प्राप्त होगा.
यही कर्म बंधन और उसका फल है
लाइफ में हमें प्रत्युत्तर में ठीक वैसा ही वापिस मिलता है, जो हम दूसरों को देते हैं. हमारे अच्छे-बुरे कर्म सदैव पग-पग पर हमारे साथ ही चलते हैं. दूसरों के प्रति अच्छी नीयत और भलमनसाहत से किये गए समस्त कर्म हमारा कल्याण करते हैं. बदनीयत एवं बेमन से कर्मों का निर्वहन सदैव दुखदायी रूप में ही फलित होता है.
अब ये केवल और हमारे वश में है कि हम हमारे कर्मों से स्वयं हेतु कैसे प्रतिफल की इच्छा रखते हैं? सत्कर्म करने से स्वयं एवं दूसरों का हित सधता है, जबकि बुरे कर्मों से इहलोक के संग-संग परलोक भी बिगड़ जाता है. अतः सदैव हमारा प्रयास ये रहे कि कर्म बंधन में बंधने के पश्चात हमारे हाथों से किसी का भी अहित ना हो. हम जो भी कर्म करें, उससे स्वयं के साथ-साथ प्राणिमात्र का भी मंगल एवं कल्याण हो.
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